पत्रंाक- संस्तुतिया/मं.शि. 2014               16 नवम्बर, 2014


प्रतिष्ठा में
डाॅ0 हरक सिंह रावत
मन्त्री कृषि एवं पर्वतीय ग्रामों में चकबन्दी
उत्तराखण्ड सरकार
देहरादून

विषय- चकबन्दी मंथन शिविर की संस्तुतियां

महोदय,
            दिनाँक 7 एवं 8 अक्टूबर को उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्र में चकबन्दी के सफल क्रियान्वयन के लिये पौड़ी में आयोजित ‘‘चकबन्दी मंथन शिविर’’ में विचारोपरान्त जो संस्तुतियां की गई है वह सरकार के विचारार्थ प्रस्तुत हैं।
आशा है कि सरकार चकबन्दी लागू करने से पूर्व इन बिन्दुओं पर अध्ययन व विचार करने प्रयास करेगी ताकि राज्य में चकबन्दी का सफल क्रियान्वयन हो सके।
‘‘चकबन्दी मंथन शिविर’’ में मुख्य अतिथि के रूप में आकर आपने विचार प्रकट किये इसके लिये समस्त प्रतिभागियों एवं चकबन्दी कार्यकताओं की ओर से आभार।
संलग्नक- संस्तुतियां एवं पुस्तक समृद्धि का मूलमन्त्र चकबन्दी।

(एल.मोहन कोठियाल)
                                                                                                सचिव, मंथन शिविर

प्रतिलिपि सूचनार्थ-
   1- श्री हरीश रावत जी, माननीय मुख्यमन्त्री, उत्तराखण्ड सरकार, देहरादून।
          2- श्री यशपाल आर्य जी, माननीय राजस्व मन्त्री, उत्तराखण्ड सरकार, देहरादून।
                  3- श्रीमान निदेशक, पर्वतीय ग्रामों में चकबन्दी, उत्तराखण्ड, देहरादून।





चकबंदी मंथन शिविर: 7-8 अक्टूबर 2014
संस्कृति भवन प्रेक्षागृह
पौड़ी-गढ़वाल

संस्तुतियां एवं सुझाव

1- राज्य में चकबन्दी लागू करने से पूर्व एक प्रारूप बने।

प्रारूप तैयार करने केे लिये एक समिति बने जिसमें विषय विशेषज्ञ, भूमि के जानकार, चकबन्दी आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ता, सेवानिवृत अधिकारी, पत्रकार, अध्येता जो पर्वतीय़ क्षेत्र की भूमि की जानकारी रखते हों का सहयोग लिया जाये। सन् 2005 में सरकार इसी फार्मूले पर आगे बढ़ रही थी।

प्रारूप में निम्न बातों का स्पष्ट उल्लेख हो -

  • प्रारूप में पर्वतीय क्षेत्र में चकबन्दी की परिभाषा, प्रक्रिया, उददेश्य।

  • चकबन्दी प्रारुप में राज्य की पर्वतीय भौगोलिक, सामाजिक व आर्थिक व सांस्कृतिक पृृष्ठभूमि का ध्यान रखा जाये।

  • पर्वतीय क्षेत्र में चकबन्दी किस प्रकार लाभकारी होगी।

  • राज्य में जिलेवार मौजूद भूमि, भूमि प्रकार, भूमि उपलब्धता पर प्रकाश डाला जाये।

  • देश के दूसरे राज्यों खासतौर पर उ0प्र0 व हिमाचल राज्य के चकबन्दी पैटर्न की प्रमुख व व्यवहारिक बातें।

  • प्रारूप बनने में राजनीतिक दलों, पर्वतीय क्षेत्र के जानकार लोगों, किसानांे, कृषि कार्य में जुटी महिलाओं के प्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों, संस्थानों, चकबन्दी कार्यकर्ताओं, पंचायत प्रतिनिधियों के सुझाव।

  • हिमाचल व दूसरे राज्यों की चकबन्दी के प्रमुख तत्व।

  • सन् 1973 में देहरादून के समीप सलान गांव में की गई चकबन्दी का अध्ययन।

  • उत्तरकाशी के बीफ व खरसाली गांवों में की गई स्वैच्छिक चकबन्दी की राह में व्यवहारिक बाधाओं पर प्रकाश डाला जाये।

  • चकबन्दी को लेकर अब तक किये गये प्रयासों का विश्लेषण हो व नये सुझावों का समावेश।

  • प्रारुप में सुझावों को जानने लिये गढ़वाल/कुमायूं अंचल में कुछ खुली गोष्ठिया हों।

  • सुझावों के लिय जन सामान्य व प्रचार माध्यमों का सहारा लिया जाये।

  • प्रारूप बनाने के लिये एक समय सीमा तय की जाये।




2- आवश्यक एक्टों को पारित किया जाये-

प्रारूप बनने के बाद विधेयक लाया जाये ताकि पर्वतीय क्षेत्र में चकबन्दी को कानूनी रूप से लागू किया जा सके। इसमें जो एक्ट हो उनमें निम्न बिन्दुओं के समाधान की व्यवस्था हो।

  • मृत/गैर दावेदार भूमि की स्थिति।

  • बिना बहीनामंे/रजिस्ट्री के क्रय विक्रय करने वाले लोगों की स्थिति।

  • आपस मंे संटवारा बंटवारा व गोल खातों की समस्या।

  • भूमिहीन परिवारों की समस्या।

  • एक परिवार की जमीन कई गांवों में होना।

  • भूमि संटवारे के प्राविधान ।

  • स्थाई व आंशिक रूप से पलायित हो चुके लोगों के भूमि सम्बन्धी सवाल व समाधान।

  • वर्षों से बंजर पड़े खेत व मूल निवास के संदेहों का स्पष्ट समाधान।




3- राज्य का अपना चकबन्दी मैनुअल बने-

एक्ट बनाने के बाद राज्य का दूसरे राज्यों की भांति उत्तराखण्ड राज्य के पर्वतीय क्षेत्र का चकबन्दी मैनुअल बने। मैनुअल तैयार करने के लिये-

  • तकनीकी समिति द्वारा मैनुअल बनाने की तैयारी को लेकर ग्राम स्तर से राज्य स्तर पर चकबन्दी की नियमों की जानकारी देने की व्यापक चर्चा भी कराई जाये।

  • विशेषज्ञ समिति की बैठकें हों जिसमें राजस्व/चकबन्दी या इस क्षेत्र में दक्ष या जानकारी रखने वाले लोग/भू सम्बन्धी कानूनी जानकार एवं अधिवक्ता शामिल हों ताकि मिले सुझावों के आधार पर एक बेहतर मैनुअल बन सके।




4- जनता में चकबन्दी योजना का व्यापक प्रचार प्रसार हो एवं इस हेतु-

  • सरकारी प्रचार माध्यमों यथा सूचना विभाग, सरकारी पत्र पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के कार्यक्रमों का सहारा लिया जाये।

  • प्रचार के लिये हर माध्यम प्रयोग में लाये जायें। इस हेतु पोस्टर, ब्रोशर, लघु पुस्तिकाओं का उपयोग हो।

  • चकबन्दी योजना की विस्तार से जानकारी प्रेस के माध्यम से भी जनता के समक्ष रखी जाये। योजना के प्रमुख बिन्दुओं को जनता को बताया जाये।

  • प्राप्त व्यवहारिक सुझावों एवं आपत्तियों पर विचार हो, उनके तकनीकी एवं विधिक पहलुओं को समझ कर उनका निराकरण हो। ताकि प्रारूप में उनका समावेश हो सके।




5-कर्मचारियों के प्रशिक्षण की व्यवस्था-
  • चकबन्दी विभाग के स्टाफ का गहन प्रशिक्षण हो।

  • यहां तैनात होने वाले स्टाॅफ में प्रतिनियुक्ति पर वही लोग रखे जायें जिनको यहां की जमीन की व्यवहारिकता का ज्ञान हो। ऐसे कर्मचारी जो इसमें रुचि रखते उनको इस कार्य में वरीयता दी जाये।

  • चकबन्दी विभाग में नियुक्त कर्मचारियों को पर्वतीय अंचल की बोलियों का ज्ञान हो।

  • चकबन्दी कर्मचारियों के द्वारा चकबन्दी करने के लिये सुस्पष्ट नियमावलियां बने।




शिविर में कुछ दूसरे सुझाव जो रखे गये-
  • चकबन्दी में गांव में रहने वाले लोगों को प्राथमिकता दी जाये। उनको गांव में मौजूद भूमि में निकट भूमि मिले।
  • बेनामी/गैरदावेदार निष्प्रयोज्य भूमि को लेकर हर गांव पंचायत का भूमि बैंक बने। यह भूमि गांव में रह रहे भूमिहीनांे को दी जाये।

  • राज्य में चकबन्दी से पहले भूमि सुधार हो।

  • राज्य के कृषि, उद्यान-बागवानी, जड़ी बूटी, वन विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, हस्तशिल्प, खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, आजीवका सुधार योजना जैसे विभागों को इससे शामिल किया जाये।

  • चकबन्दी पहले उन गांवों में लागू हो जहां से सरकार को प्रस्ताव दिये गये हों।

  • या दो-दो गांवों की बजाय कई गांवांे के क्लस्टर बना कर चकबन्दी हो ताकि एक पूरे क्षेत्र पर उसका प्रभाव दिखे और दूसरे गावों के लोग उससे प्रेरित हों सकें।

  • पूर्ण रूप में जनशून्य हो चुके गाँवों को भी इस योजना में लिया जाय ताकि पलायन कर चुके लोग फिर से अपने गाँवों की ओर लौट सके।

  • जिन गांवों में चकबन्दी हो वहां पर सारे सम्बन्धित सरकारी विभागों की योजनायें लागू कर उनको प्रोत्साहन दिया जाये।




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